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Tuesday, 4 August 2015

अश्वगन्धादि चूर्ण – मस्तिष्क विकार और विर्य संबधी समस्या से निजात दिलाने में सहायक

मस्तिष्क‬ मानव शरीर का सबसे अहम् हिस्सा हैं | यह सभी तन्त्रिकाओ और उनके बीच होने वाली सारी क्रियाओ पे नियत्रण रखता हैं| यह मानव शरीर का एक आवश्यक अंग होने के साथ-साथ प्रकृति की एक उत्कृष्ट रचना भी है। देखने में यह एक जैविक रचना से अधिक मात्र नहीं प्रतीत होता। परन्तु यह हमारी इच्छाओं, संवेगों, मन, ‪‎बुद्धि‬, चित्त, अहंकार, चेतना, ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व इत्यादि का केन्द्र भी होता है। इसके दुर्वल होने पे मनुष्य अतिक्षीण महसूस करता हैं जिसके फलस्वरूप अनेक बिमारिया उत्पन्न हो सकते हैं | आयुर्वेद की सहज उपचार से हम इस प्रकार की असहज विमारियो से निजात पा सकते हैं | ‪‎अश्वगन्धादि‬ चूर्ण हमें इन विकारों से मुक्त कराने में सहायक हैं | आइये जाने इसे कैसे करे उपयोग |

अश्वगन्धा ४० तोला विराधा ४० तोला इन दोनों को लेकर इन दोनों को कूटकर सूक्ष्म चूर्ण करके रख ले |

मात्रा और अनुपान – ३-६ माशे तक सुबह-शाम दूध या जल के साथ ले |

गुण और उपयोग- इस चूर्ण के सेवन से वीर्यविकार, शुक्रक्षय, ‪‎विर्य‬ का पतलापन, शिथिलता, शीघ्रपतन‬, प्रमेह आदि विकार नष्ट होकर वीर्य गाढ़ा और निर्दोष बनता हैं | इस चूर्ण का सबसे उत्तम प्रभाव विर्यवाहिनी नाड़ीयो, वातवाहिनी नाड़ीयो और मस्तिष्क को परिपुष्ट करता हैं | अनिद्रा‬, ह्रदय की कमजोरी‬ को नष्ट करता हैं | यह चूर्ण उत्तम ‪‎शक्तिवर्धक‬ तथा वाजिकरण हैं | शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाकर शरीर के वजन को बढाता एवम उत्तम वय:स्थापक हैं |

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