आयुर्वेद में गुग्गुल का बहुत बड़ा महत्व हैं | समस्त वायुरोगों में इसका
प्रयोग किया जाता हैं लकिन इसका पूर्ण लाभ तभी होता हैं जब ये सस्त्रोक्त
विधि से शोधन कर खूब कुटाई के बाद तैयार किया गया हो |
बबूल की छाल, सोंठ, पीपल, मिर्च, आवला, हर्रे, बहेड़ा सब सामान भाग ले और शुद्ध गुग्गुल सबके सामान भाग लेकर पहले कष्ठोधियो को कूटकर कपडे से छान चूर्ण बना, गुग्गुल के साथ मिला, घी के सहारे एकत्र कूटकर, ३-३ रत्ती को गोलिया बना, छाया में सूखा के सुरक्षित रख ले |
मात्रा और अनुपान- २-४ गोली दिन भर में २-३ बार गर्म जल या दूध से दे |
गुण और उपयोग- कही फिसल कर गिर पड़ने, किसी पेंड आदि से गिर पड़ने अथवा डंडा आदि से चोट लग जाने से हड्डिया टूट गयी हो, और जुड़ने के बाद भी दर्द बना रहता हैं तो इसके दर्द से निजात पाने में आभा गुग्गुल बहुत उपयोगी हैं | यह भस्म सन्धानकारक एवं पिडानाशक हैं
बबूल की छाल, सोंठ, पीपल, मिर्च, आवला, हर्रे, बहेड़ा सब सामान भाग ले और शुद्ध गुग्गुल सबके सामान भाग लेकर पहले कष्ठोधियो को कूटकर कपडे से छान चूर्ण बना, गुग्गुल के साथ मिला, घी के सहारे एकत्र कूटकर, ३-३ रत्ती को गोलिया बना, छाया में सूखा के सुरक्षित रख ले |
मात्रा और अनुपान- २-४ गोली दिन भर में २-३ बार गर्म जल या दूध से दे |
गुण और उपयोग- कही फिसल कर गिर पड़ने, किसी पेंड आदि से गिर पड़ने अथवा डंडा आदि से चोट लग जाने से हड्डिया टूट गयी हो, और जुड़ने के बाद भी दर्द बना रहता हैं तो इसके दर्द से निजात पाने में आभा गुग्गुल बहुत उपयोगी हैं | यह भस्म सन्धानकारक एवं पिडानाशक हैं
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