आयुर्वेद और हमारी प्रकृति

आयुर्वेद प्रकृति में उपस्थित उन द्रव्यों का समावास हैं जिससे मनुष्य समायोजित एवं क्रमबद्ध सदुपयोग से सुरक्षित स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता हैं | आइये जाने क्या हैं ये द्रव्य और कब करे इनका प्रयोग ?

जाने आयुर्वेद और उसकी महत्ता

आयुर्वेद एक प्राचीनतम उपचार हैं जो सदियो से चली आ रही हैं | इसका महत्व दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा हैं | इसी संदर्भ में हम आपको कुछ आयुर्वेदिक उपचार और उसकी महत्ता को बताने जा रहे हैं | आइये जाने क्या हैं ये ?

स्वावलंबन और नियमितता की परख हैं आयुर्वेद

आयुर्वेद स्वावलंबन एवं नियमितता की परख हैं | इसके गुणधर्म मनुष्य के शरीर को आन्तरिक और बाह्य दोनों ही रूप से लोकिक बनाता हैं | परन्तु इसके लिए नियमितता और स्वव्लाम्बिता अनिवार्य हैं | स्वावलंबी बने स्वस्थ्य रहे

स्वस्थ्य शरीर में सिर्फ आत्मा ही नहीं परमात्मा बसते हैं

अति सुन्दर बचन "मूरख के लिए धन और गुणी के लिए स्वास्थ्य" समान कोई संचय नहीं हैं | एक स्वस्थ शरीर ने एक स्वस्थ आत्मा का निवास होता हैं | आयुर्वेद अपनाये स्वस्थ्य रहे सुरक्षित रहे |

सरल हैं स्वास्थ्य सहेजना

नित्य क्रिया में उपयोग होने वाली वस्तुये किस प्रकार आपके लिए उपयोगी हैं, कब और कितनी मात्रा में इसका उपयोग करे ? ये आयुर्वेद आपको बताता हैं | अत: सहज और सरल हैं आयुर्वेद, और उतना ही उपयोगी हैं |

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Saturday, 19 September 2015

डेंगू का रामवाण इलाज – गिलोय


डेंगू  (Dengue)   भहावह रूप लेते जा रहा हैं | दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड जैसे अनेक राज्य इस बिमारी से ग्रसित हैं | यह एक ऐसी बीमारी हैं जिससे कई लोग जिन्दगी से जद्दोजहद कर रहे हैं | आज हम आप लोगो को आयुर्वेद में डेंगू से बचने और इसके सम्पूर्ण निस्तारण का अचूक इलाज बताने जा रहे हैं |

इलाज जानने से पहले जाने क्या हैं इस रोग का आम लक्षण –
  • ठण्ड लगती हैं और तेज बुखार आना
  • डेंगू के होने पे शरीर पे लाल रंग के चकते होने लगते हैं – पहले पैर से फैलते हुए पूरे शरीर में फैलता हैं |
  •  पेट खराब होना, पेट में दर्द, दस्त लगना आम लक्षण हैं |
  •     प्लेटलेट्स की कमी और नसों में दबाब आना
  •      लगतार सर दर्द, आखो में दर्द आम लक्षण हैं |
वचाव : 
गिलोय -
गिलोय (Giloy) डेंगू के रोग में रामवाण इलाज माना जाता हैं | गिलोय को पीसकर इसके जूस पीने पे प्लेटलेट्स तुरंत ही बनने शुरू हो जाते हैं | नीम के पेंड पे चढ़ी हुई गिलोय की तना और भी फैयदेमंद होता हैं | अगर मनुष्य इस तने का प्रयोग नित्य करे तो अनेक बिमरिवो से मुक्त हो सकता हैं | मुख्यत: डेंगू में गिलोय सर्वोत्तम माना जाता हैं |

पपीते का पत्ता –
पपीते का पत्ता, प्लेटलेट्स को निचे गिरने से रोकता है | साफ़ सुथरे पते को पिस कर उसके जूस का आप सेवन डेंगू में कर सकते हैं | सामान्यत: इसको नित्य लेने पे डेंगू से बच सकते हैं |

गेहू का नवीन पौधा –
डेंगू के कारण नसों के तनाव को रोकने में सहायक , प्लेटलेट्स वृधि में भी सहायक



निम्बू एवं संतरा –
विटामिन C की अधिकता के कारण संतरा एवं निम्बू पुरे शरीर में ताजगी बनाये रखने में सहयक हैं | जिससे डेंगू के जीवाणु शरीर को शिथिल नहीं कर पाते |

Thursday, 17 September 2015

जाने कैसे बचाए फेफड़ो को वायु प्रदूषण से


आज कल की अस्त-व्यत जीवन शैली में वाहन मानव जीवन का आवश्यकता हो गयी हैं | जिसके परिणाम स्वरुप वायु प्रदूषण नित्य प्रतिदिन बढ़ता जा रहा हैं | वायु प्रदूषण सिर्फ एक वाहन ही कारन नहीं हैं | इसके अलावा अन्य कारण भी हैं | जैसे -
ताप विद्युत गृह, सीमेंट, लोहे के उद्योग, तेल शोधक उद्योग, खान, पैट्रोरासायनिक उद्योग, वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं
वायु प्रदूषण के कुछ ऐसे प्रकृति जन्य कारण भी हैं जिसको रोकना मनुष्य के वश में नहीं है। जैसे मरूस्थलों में उठने वाले रेतीले तूफान, जंगलों में लग जाने वाली आग एवं घास के जलने से उत्पन्न धुऑं कुछ ऐसे रसायनों को जन्म देता है, जिससे वायु प्रदूषित हो जाती है, प्रदूषण का स्रोत कोई भी देष हो सकता है पर उसका प्रभाव, सब जगह पड़ता है।
वायु प्रदूषण के कारण कुछ हानिकारक तत्व उत्पान होते हैं जो हमारे फेफड़ो (lungs) को बहुत ही नुक्सान पहुचाते हैं | ये तत्व निम्नवत हैं - कार्बन डाई आक्साइड (CO2), क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC), लैड, ओजोन, नाइट्रोजन आक्साइड (Nox), सस्पेन्ड पर्टीकुलेट मैटर (SPM) एवं सल्फर डाई आक्साइड (SO2)

विटामिन सी युक्त द्रब्य प्रयोग करे –
वायु प्रदूषण के प्रभाव से बचने के लिए घर से बाहर निकलने से पहले नीबू की चाय या संतरा खाएं।
ब्रोकली का प्रयोग करे –
ब्रोकली का तना चबाना फेफड़ों को स्वस्थ रखता है। कैंसर प्रिवेंशन रिसर्च जर्नल में जून में प्रकाशित हुए एक अध्ययन के अनुसार पौधों में पाया जाने वाला तत्व सल्फोराफेन ब्रोकली में प्रचुरता से होता है, जो शरीर से बेंजीन नामक तत्व बाहर निकालने में मदद करता है
कच्चे लहसुन का प्रयोग करे –
सप्ताह में दो बार लहसुन की कली को कच्चा खाना फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को कम करता है। जिसका उपयोग आप कचे सभी के रूप में कर सकते हैं | कधिकता न करे ये गर्म भी होता हैं |
खुले हवा में विचरण करे एक स्थान पे न बैठे –
एक स्थान पे जम के न बैठे बिचरन करते रहे | एन्वायर्नमेंट हेल्थ पर्सपेक्टिव्स जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, नियमित दौड़ लगाएं या किसी भी तरह का व्यायाम करें। शारीरिक परिश्रम, जैसे कोई खेल, पैदल चलना, बाइकिंग या बागबानी करना उम्र  लंबी करता है और असमय रोगों से भी बचाता है। यह मौत की आशंका को 16 से 22% तक कम करता है और इससे शरीर पर वायु प्रदूषण का असर कम होता है।  छाती, कमर व कंधे के व्यायाम नियमित रूप से करें।
नित्य प्राणायाम करें-
प्राणायाम श्वास प्रक्रिया की शिथिलता को उतेजित करता  है, जिससे फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। वायु के जरिए शरीर में प्रवेश करने वाले टॉक्सिन बाहर निकलते हैं | अथ: नित्य प्राणायाम करें

Thursday, 3 September 2015

बंग भस्म एक, लाभ अनेक – मुख का दुर्गन्ध, और चर्म रोग दूर करे

समान्यतया मनुष्य दो व्याधियो से अकसर परेशान रहता हैं | एक मुख का दुर्गन्ध और दूसरा चर्म बिकार (skin diseases). इसको ध्यान रखते हुए आज हम आपको एक ऐसी औषधी बताने जा रहे हैं जिससे आप दोनों से मुक्ति पा सकते हैं | अत: आप एक औषधी को दो रूप में प्रयोग में ला सकते हैं | आईये जाने ये औषधी हैं क्या ? और कैसे करे इसका उपयोग |


चर्म बिकार (skin diseases) में - बंग भस्म १ रत्ती तबकिया हरताल भस्म आधी रत्ती में मिलाकर त्रिफला चूर्ण १ माशा के साथ दे | ऊपर से खदिरारिष्ट या सारिवाधास्व्व पिलावे | उत्तम लाभ मिलेगा


मुख की दुर्गन्ध में- बंग भस्म १ रत्ती, शुद्ध कपूर २ रत्ती, सेंधा नमक २ रत्ती, इन्हें कडवा तेल में मिलाकर मंजन करे | मुहँ की बदबू दूर होगा |

यह उपाय कारगर हैं इसका उपयोग नित्यदिन कर सकते हैं |