आयुर्वेद और हमारी प्रकृति

आयुर्वेद प्रकृति में उपस्थित उन द्रव्यों का समावास हैं जिससे मनुष्य समायोजित एवं क्रमबद्ध सदुपयोग से सुरक्षित स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता हैं | आइये जाने क्या हैं ये द्रव्य और कब करे इनका प्रयोग ?

जाने आयुर्वेद और उसकी महत्ता

आयुर्वेद एक प्राचीनतम उपचार हैं जो सदियो से चली आ रही हैं | इसका महत्व दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा हैं | इसी संदर्भ में हम आपको कुछ आयुर्वेदिक उपचार और उसकी महत्ता को बताने जा रहे हैं | आइये जाने क्या हैं ये ?

स्वावलंबन और नियमितता की परख हैं आयुर्वेद

आयुर्वेद स्वावलंबन एवं नियमितता की परख हैं | इसके गुणधर्म मनुष्य के शरीर को आन्तरिक और बाह्य दोनों ही रूप से लोकिक बनाता हैं | परन्तु इसके लिए नियमितता और स्वव्लाम्बिता अनिवार्य हैं | स्वावलंबी बने स्वस्थ्य रहे

स्वस्थ्य शरीर में सिर्फ आत्मा ही नहीं परमात्मा बसते हैं

अति सुन्दर बचन "मूरख के लिए धन और गुणी के लिए स्वास्थ्य" समान कोई संचय नहीं हैं | एक स्वस्थ शरीर ने एक स्वस्थ आत्मा का निवास होता हैं | आयुर्वेद अपनाये स्वस्थ्य रहे सुरक्षित रहे |

सरल हैं स्वास्थ्य सहेजना

नित्य क्रिया में उपयोग होने वाली वस्तुये किस प्रकार आपके लिए उपयोगी हैं, कब और कितनी मात्रा में इसका उपयोग करे ? ये आयुर्वेद आपको बताता हैं | अत: सहज और सरल हैं आयुर्वेद, और उतना ही उपयोगी हैं |

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Saturday, 30 January 2021

जाने बवासीर हेमोरहोयड्स Hemorrhoids, पाइल्स का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार


आजका पोस्ट बवासीर के रोगियों के लिए वरदान है ,इस पोस्ट में बवासीर की हर समस्या का समाधान छुपा है ,इसमें

बवासीर (Piles) एक असाध्य रोग है। इसे हेमोरहोयड्स Hemorrhoids, पाइल्स या मूलव्याधि भी कहते हैं।

बवासीर को आयुर्वेद में अर्श यानि दीर्घकालीन प्राण-घातक बीमारी कहा जाता है।

बवासीर में आंत के अंतिम हिस्से या मलाशय (गुदा) की भीतरी दीवार में रक्त की धमनी और शिराओं में सूजन हो जाती है ,और वो तनकर फैल जाती है। मल त्याग के वक्त जोर लगाने या दवाब देने से या कब्ज के कड़े मल से रगड़ खाने से रक्त की नसों में दरार पड़ जाती है ,और नतीजा उस में से खून का स्राव होने लगता है।

बवासीर में मलद्वार के पास रक्त की शिराएं फूल जाती है। हेमोरॉयडल रक्त शिराएं गुदा और रेक्टम के नीचे स्थित होती है। हेमोरॉयडल रक्त शिराओं में सूजन होने से जब यह फूल जाती है ! तो मल को निकलने में काफी परेशानी होती है।

हेमोरॉयडल रक्त शिराएं की दीवार इतनी तन जाती है ,कि मल निकलने के दौरान दर्द होने लगता है , और मलद्वार में खुजलाहट होने लगती है।

मस्सों से पीड़ित मरीजों को दर्द, घाव, खुजली, जलन, सूजन और गर्मी की शिकायत रहती हैं। प्रसव के दौरान जब कोई स्त्री बच्चे को जन्म देते समय अधिक ज़ोर लगाती है ,तब उसे भी खूनी बवासीर होने की संभावना रहती है।

इस रोग से पीड़ित अधिकतर मरीज कब्ज से पीड़ित रहते हैं। इस बवासीर के कारण मलत्याग करते समय रोगी को बहुत तेज दर्द होता है , और मस्सों से खून बहने लगता है।

यह बहुत ही गंभीर रोग है , क्यों कि इस में दर्द तो होता ही है ,साथ में शरीर का खून भी व्यर्थ निकल जाता है।

बबासीर से बचने के घेरलू उपाय :-

  1. गुड़ में बेलगिरी मिला कर खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है ,और बवासीर रोग ठीक हो जाता है
  2. पका पपीता, पका बेल, सेब, नाशपाती, अंगूर, तरबूज, मौसमी फल, किशमिश, छुआरा, मुनक्कात, अंजीर, नारियल, संतरा, आम, अनार खाना बवासीर में फायदेमंद होता है
  3. मस्सों पर सरसों का तेल लगाना चाहिए, फिर इसके बाद अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए और इस के बाद एनिमा लेना चाहिए तथा मस्सों पर मिट्टी का गोला रखना चाहिए।
  4. रात को १०० ग्राम किशमिश पानी में भिगो दें और इसे सुबह के समय में उसी पानी में इसे मसल दें। इस पानी को रोजाना सेवन करने से कुछ ही दिनों में बवासीर रोग ठीक हो जाता है

  5. नींबू को काट कर उस पर चार ग्राम कत्था पीस कर बुरक दें और उसे रात में छत पर रख दें। सुबह दोनों टुकड़ों को चूस लें, यह खूनी बवासीर की उत्तम दवा है।

  6.  चोकर समेत आटे की रोटी, गेहूं का दलिया, हाथ कुटा- पुराना चावल, सोठी चावल का भात, चना और उस का सत्तू, मूंग, कुलथी, मोठ की दाल, छाछ का नियमित सेवन करना चाहिए। 

  7.         रात में सोते समय एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के दो चम्मच डालकर पीने से भी लाभ होता है। गुदा के भीतर रात के सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व दवायुक्त बत्ती या क्रीम का प्रवेश भी मल निकास को सुगम करता है।